मंत्र चिकित्सा
मंत्र चिकित्सा मंत्र क्या है ज्योतिषीय उपायों में इनका क्या महत्व है मंत्र मन को एकाग्र करके जप के द्वारा समस्त भयो का विनाश करके पूरण रक्षा करने वाले शब्दों को मंत्र कहा जाता है यह मंत्र विभिन्न ग्रहों की किरण रश्मियों को आकर्षित करने की सर्वाधिक प्रभावशाली रीति है मंत्र दो शब्दों से मिलकर बना है पहला है मन और दूसरा है त्र
मन शब्द से मन को एकाग्र करना और त्र शब्द से रक्षा करना और जप से अभीष्ट फलों की प्राप्ति को मंत्र कहा जाता है
किसी भी मंत्र की रचना छंदों वह सूत्रों के आधार पर की जाती है यह मंत्र किसी विशिष्ट देवता और उससे संबंधित ग्रह को संकल्पित करके रचे गए होते हैं कुछ विशिष्ट मंत्र कई ग्रहों को आधार बनाकर रचे जाते हैं ताकि उनके प्रयोग द्वारा विभिन्न ग्रहों की किरण रश्मियों को नियंत्रित या विस्तृत किया जा सके
मंत्र का स्वरूप:_
मंत्र का निर्माण वर्णमाला के स्वर और व्यंजनों के योग से होता है वर्णमाला के अ से लेकर क्ष तक 50 अक्षरों को मातृका कहा जाता है इन मातृका वर्णों से ही संसार के समस्त मंत्रों का निर्माण हुआ है मातृ का शब्द का अर्थ है माता या जननी समस्त मंत्र वर्णात्मक है तथा शक्ति स्वरुप है और वह शक्ति शिव की है समस्त मंत्र साक्षात शिव शक्ति का स्वरुप है यह माता की तरह हमारी रक्षा करते हैं यह मंत्र अति शक्ति संपन्न होते हैं और इन्हीं मात्रात्मक वर्णों से ही समस्त विश्व का सृजन हुआ है
ज्योतिष शास्त्र में अनिष्ट फल दूर करने और शुभ फलों में वृद्धि करने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं जैसे उस ग्रह से संबंधित रतन पहनना ग्रहों से संबंधित दान पूजा वह व्रत करना जल चढ़ाना और मंत्र जप इन सब उपायों में से मंत्र जप का उपाय सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है
मंत्रों का जप अधिकतर 108 की संख्या में किया जाता है 108 मनकों की माला होती है
108 मंत्रों के जप का महत्व:-
ज्योतिष के आधार पर 27 नक्षत्र होते हैं प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं एक राशि चक्र=360°=27 नक्षत्र
एक नक्षत्र=4
27×4 =108
जन्म के समय नक्षत्र चरण के अक्षर से ही नामकरण किया जाता है इस तरह 108 संख्या का अपना अलग ही महत्व है मंत्र जप के लिए माला का उपयोग करना अति आवश्यक है तुलसी, रुद्राक्ष या स्फटिक की माला का उपयोग किया जाता है रुद्राक्ष की माला सर्व उपयोगी है क्योंकि रुद्राक्ष की माला से जप करने साधक में सकारात्मक ऊर्जा का सृजन होता है
हनुमान जी की साधना के लिए मंत्र जप:-
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा
ओम ओम ओम हनुमते फट
ओम पवन नंदनाय नमः स्वाहा
ज्योतिष शास्त्र में अनिष्ट फल दूर करने के लिए और शुभ फलों में वृद्धि करने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं जैसे उस ग्रह से संबंधित रत्न पहनना ग्रहों से संबंधित दान पूजा व्रत जल चढ़ाना और मंत्र जाप इनकम उपायों में से मंत्र जप का उपाय अति उत्तम है
मंत्र जप से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है मंत्र जप एक यौगिक स्प्रिचुअल प्रक्रिया है जो सांस की लय पर आधारित है मंत्र जप से विभिन्न प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है अब आप सोचोगे कि मंत्र जप से बीमारियां कैसे दूर हो सकती हैं यह ना तो अंधविश्वास है और ना ही चमत्कार है यह तथ्य पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कोई भी बीमारी हो उससे संबंधित ग्रह का मंत्र जप बताया जाता है मंत्रों की एक निश्चित संख्या होती है जो नियमित रूप से निश्चित समय पर की जाती है यह मंत्र जप रुणीजा कुशा के आसन पर किया जाता है अब यह मंत्र कैसे प्रभाव डालते हैं जिस तरह कुएं के पत्थर पर लगातार पानी पड़ने से गड्ढा पड़ जाता है उसी तरह लगातार जप करने से मंत्रों का प्रभाव पड़ता है जब लगातार पानी पड़ने से एक पत्थर गिर सकता है तो लगातार मंत्रों द्वारा अपने देवता का आवाहन करने से उनका प्रभाव क्यों नहीं पड़ेगा कहते हैं मंत्र कभी खाली नहीं जाते यह ब्रह्मांड में घूमते रहते हैं जैसे कंपन के द्वारा हवा के माध्यम से अपनी ध्वनि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती है उसी तरह मंत्रों का जब लगातार जब किया जाता है तो यह ध्वनि के वेग से कंपनी के द्वारा हवा के माध्यम से अपने संबंधित देवता तक पहुंचे हैं जब-जब की निश्चित संख्या पूरी हो जाती है तो मंत्र सिद्ध हो जाता है और उस ग्रह से संबंधित सभी बीमारियां और जा परेशानियां दूर हो जाती हैं इस करें इन मंत्रों का आध्यात्मिक प्रभाव हुआ सभी मंत्रों के अर्थ जरूर होते हैं अर्थ इतने महत्वपूर्ण नहीं है जितना इन मंत्रों की तरंगों को महसूस करना है
ब्रह्मांड में हर वस्तु दूसरे किसी भी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है जब मंत्र उच्चारण या हवन किया जाता है तो उसका वातावरण पर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है मंत्रों के उच्चारण से हवा में सकरात्मक तरंगे चलती हैं और उनको श्रवण करने से मन शांत होता है अब हम बताएंगे कि किस वैज्ञानिक प्रक्रिया के द्वारा मंत्र हमें शारीरिक रूप से प्रभावित करते हैं मंत्र जप से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में सफेद रक्त कणिकाएं होती हैं जो हमारे शरीर में उत्पन्न बीमारियों के कीटाणुओं को नष्ट करके रोगों में रक्षा करती है प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में इम्यून सिस्टम होता है रोग के कीटाणुओं को नष्ट करता रहता है और हमारे रोगों से रक्षा करता है हमारे शरीर में अंतर 17 ग्रंथियां होती हैं जिनमें से लगातार एक रस निकलता रहता है लेकिन कुछ भावनात्मक कारणों के कारण यह ग्रंथियां काम करना बंद कर देती हैं और इन रस निकलना बंद हो जाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है मंत्र उच्चारण से भावनाओं पर नियंत्रण होता है और अंत स्त्रावी ग्रंथियां काम करना चालू कर देती हैं और इन से लगातार रस निकलता निकलना चालू हो जाता है जिससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और
शरीर स्वस्थ और निरोग हो जाता है
मंत्र तभी प्रभावशाली होते हैं जब इनका उच्चारण सही हो और मंत्र उच्चारण की प्रक्रिया सही ढंग से हो
उच्चारण विधि:-.
अपने मन को एकाग्रचित करके शांत मन से पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके सुखासन जा पद्मासन में ध्यान मुद्रा बनाकर म आसन कुशा या उन का ले सकते हैं जब के लिए तुलसी चंदन या रुद्राक्ष की माला ले सकते हैं अब अपने इष्ट देवता का ध्यान कीजिए और उनसे प्रार्थना करें जिस बीमारी को दूर करने या जिस पर्पस के लिए आप मंत्र जप कर रहे हैं वह बीमारी दूर कीजिए वह काम पूरा करें इसमें आपकी पूरी श्रद्धा और विश्वास होना अति आवश्यक है क्योंकि श्रद्धा और विश्वास से साइकोलॉजिकल प्रभाव पड़ता है
मंत्र शास्त्र के अनुसार मंत्रों का स्थान सर्वोपरि है ऐसे अनेक मंत्र हैं जिनके जबसे सात्विक विचारों का जन्म होता है और रोगी रोग मुक्त होकर शांति से अपना जीवन यापन करता है
चमत्कारी मंत्र:-
जिनके जब से मनमाफिक सिद्धि मिलती है
1. ओम गण गणपतए नमः(108) मंत्र यह मंत्र हाथी दांत की माला से करने से प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है जिन लड़कों की शादी में बाधा आ रही है वह इस मंत्र को लगातार 21 बुधवार जब तक इस मंत्र का जप करें तथा चूरमा अथवा मूंग के सवा किलो लड्डू का भोग लगाकर गणेश जी को अर्पित करें तथा बच्चों एवं परिजनों में प्रसाद दे तो उनका अति शीघ्र विवाह हो जाता है व्यापार वृद्धि एवं छात्र छात्राओं की परीक्षाओं में भी यह मंत्र उपयोगी
है.
रोग मुक्ति मंत्र:-
1. ॐ अच्युताय नमः (108) बार प्रतिदिन
2. ॐ गोविंदाय नमः (108)बार प्रतिदिन
आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन सूर्य उदय से दूसरे दिन के सूर्य उदय तक इनका जप करने से यह यह मंत्र सिद्ध होता है
और साधक जटिल से जटिल रोगों से मुक्त होता है
साथ ही उसे अन्नपूर्णा, धन ,लक्ष्मी व राज्य लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
मन शब्द से मन को एकाग्र करना और त्र शब्द से रक्षा करना और जप से अभीष्ट फलों की प्राप्ति को मंत्र कहा जाता है
किसी भी मंत्र की रचना छंदों वह सूत्रों के आधार पर की जाती है यह मंत्र किसी विशिष्ट देवता और उससे संबंधित ग्रह को संकल्पित करके रचे गए होते हैं कुछ विशिष्ट मंत्र कई ग्रहों को आधार बनाकर रचे जाते हैं ताकि उनके प्रयोग द्वारा विभिन्न ग्रहों की किरण रश्मियों को नियंत्रित या विस्तृत किया जा सके
मंत्र का स्वरूप:_
मंत्र का निर्माण वर्णमाला के स्वर और व्यंजनों के योग से होता है वर्णमाला के अ से लेकर क्ष तक 50 अक्षरों को मातृका कहा जाता है इन मातृका वर्णों से ही संसार के समस्त मंत्रों का निर्माण हुआ है मातृ का शब्द का अर्थ है माता या जननी समस्त मंत्र वर्णात्मक है तथा शक्ति स्वरुप है और वह शक्ति शिव की है समस्त मंत्र साक्षात शिव शक्ति का स्वरुप है यह माता की तरह हमारी रक्षा करते हैं यह मंत्र अति शक्ति संपन्न होते हैं और इन्हीं मात्रात्मक वर्णों से ही समस्त विश्व का सृजन हुआ है
ज्योतिष शास्त्र में अनिष्ट फल दूर करने और शुभ फलों में वृद्धि करने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं जैसे उस ग्रह से संबंधित रतन पहनना ग्रहों से संबंधित दान पूजा वह व्रत करना जल चढ़ाना और मंत्र जप इन सब उपायों में से मंत्र जप का उपाय सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है
मंत्रों का जप अधिकतर 108 की संख्या में किया जाता है 108 मनकों की माला होती है
108 मंत्रों के जप का महत्व:-
ज्योतिष के आधार पर 27 नक्षत्र होते हैं प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण होते हैं एक राशि चक्र=360°=27 नक्षत्र
एक नक्षत्र=4
27×4 =108
जन्म के समय नक्षत्र चरण के अक्षर से ही नामकरण किया जाता है इस तरह 108 संख्या का अपना अलग ही महत्व है मंत्र जप के लिए माला का उपयोग करना अति आवश्यक है तुलसी, रुद्राक्ष या स्फटिक की माला का उपयोग किया जाता है रुद्राक्ष की माला सर्व उपयोगी है क्योंकि रुद्राक्ष की माला से जप करने साधक में सकारात्मक ऊर्जा का सृजन होता है
हनुमान जी की साधना के लिए मंत्र जप:-
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा
ओम ओम ओम हनुमते फट
ओम पवन नंदनाय नमः स्वाहा
ज्योतिष शास्त्र में अनिष्ट फल दूर करने के लिए और शुभ फलों में वृद्धि करने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं जैसे उस ग्रह से संबंधित रत्न पहनना ग्रहों से संबंधित दान पूजा व्रत जल चढ़ाना और मंत्र जाप इनकम उपायों में से मंत्र जप का उपाय अति उत्तम है
मंत्र जप से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है मंत्र जप एक यौगिक स्प्रिचुअल प्रक्रिया है जो सांस की लय पर आधारित है मंत्र जप से विभिन्न प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है अब आप सोचोगे कि मंत्र जप से बीमारियां कैसे दूर हो सकती हैं यह ना तो अंधविश्वास है और ना ही चमत्कार है यह तथ्य पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कोई भी बीमारी हो उससे संबंधित ग्रह का मंत्र जप बताया जाता है मंत्रों की एक निश्चित संख्या होती है जो नियमित रूप से निश्चित समय पर की जाती है यह मंत्र जप रुणीजा कुशा के आसन पर किया जाता है अब यह मंत्र कैसे प्रभाव डालते हैं जिस तरह कुएं के पत्थर पर लगातार पानी पड़ने से गड्ढा पड़ जाता है उसी तरह लगातार जप करने से मंत्रों का प्रभाव पड़ता है जब लगातार पानी पड़ने से एक पत्थर गिर सकता है तो लगातार मंत्रों द्वारा अपने देवता का आवाहन करने से उनका प्रभाव क्यों नहीं पड़ेगा कहते हैं मंत्र कभी खाली नहीं जाते यह ब्रह्मांड में घूमते रहते हैं जैसे कंपन के द्वारा हवा के माध्यम से अपनी ध्वनि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती है उसी तरह मंत्रों का जब लगातार जब किया जाता है तो यह ध्वनि के वेग से कंपनी के द्वारा हवा के माध्यम से अपने संबंधित देवता तक पहुंचे हैं जब-जब की निश्चित संख्या पूरी हो जाती है तो मंत्र सिद्ध हो जाता है और उस ग्रह से संबंधित सभी बीमारियां और जा परेशानियां दूर हो जाती हैं इस करें इन मंत्रों का आध्यात्मिक प्रभाव हुआ सभी मंत्रों के अर्थ जरूर होते हैं अर्थ इतने महत्वपूर्ण नहीं है जितना इन मंत्रों की तरंगों को महसूस करना है
ब्रह्मांड में हर वस्तु दूसरे किसी भी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है जब मंत्र उच्चारण या हवन किया जाता है तो उसका वातावरण पर अत्यंत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है मंत्रों के उच्चारण से हवा में सकरात्मक तरंगे चलती हैं और उनको श्रवण करने से मन शांत होता है अब हम बताएंगे कि किस वैज्ञानिक प्रक्रिया के द्वारा मंत्र हमें शारीरिक रूप से प्रभावित करते हैं मंत्र जप से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में सफेद रक्त कणिकाएं होती हैं जो हमारे शरीर में उत्पन्न बीमारियों के कीटाणुओं को नष्ट करके रोगों में रक्षा करती है प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में इम्यून सिस्टम होता है रोग के कीटाणुओं को नष्ट करता रहता है और हमारे रोगों से रक्षा करता है हमारे शरीर में अंतर 17 ग्रंथियां होती हैं जिनमें से लगातार एक रस निकलता रहता है लेकिन कुछ भावनात्मक कारणों के कारण यह ग्रंथियां काम करना बंद कर देती हैं और इन रस निकलना बंद हो जाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है मंत्र उच्चारण से भावनाओं पर नियंत्रण होता है और अंत स्त्रावी ग्रंथियां काम करना चालू कर देती हैं और इन से लगातार रस निकलता निकलना चालू हो जाता है जिससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और
शरीर स्वस्थ और निरोग हो जाता है
मंत्र तभी प्रभावशाली होते हैं जब इनका उच्चारण सही हो और मंत्र उच्चारण की प्रक्रिया सही ढंग से हो
उच्चारण विधि:-.
अपने मन को एकाग्रचित करके शांत मन से पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके सुखासन जा पद्मासन में ध्यान मुद्रा बनाकर म आसन कुशा या उन का ले सकते हैं जब के लिए तुलसी चंदन या रुद्राक्ष की माला ले सकते हैं अब अपने इष्ट देवता का ध्यान कीजिए और उनसे प्रार्थना करें जिस बीमारी को दूर करने या जिस पर्पस के लिए आप मंत्र जप कर रहे हैं वह बीमारी दूर कीजिए वह काम पूरा करें इसमें आपकी पूरी श्रद्धा और विश्वास होना अति आवश्यक है क्योंकि श्रद्धा और विश्वास से साइकोलॉजिकल प्रभाव पड़ता है
मंत्र शास्त्र के अनुसार मंत्रों का स्थान सर्वोपरि है ऐसे अनेक मंत्र हैं जिनके जबसे सात्विक विचारों का जन्म होता है और रोगी रोग मुक्त होकर शांति से अपना जीवन यापन करता है
चमत्कारी मंत्र:-
जिनके जब से मनमाफिक सिद्धि मिलती है
1. ओम गण गणपतए नमः(108) मंत्र यह मंत्र हाथी दांत की माला से करने से प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है जिन लड़कों की शादी में बाधा आ रही है वह इस मंत्र को लगातार 21 बुधवार जब तक इस मंत्र का जप करें तथा चूरमा अथवा मूंग के सवा किलो लड्डू का भोग लगाकर गणेश जी को अर्पित करें तथा बच्चों एवं परिजनों में प्रसाद दे तो उनका अति शीघ्र विवाह हो जाता है व्यापार वृद्धि एवं छात्र छात्राओं की परीक्षाओं में भी यह मंत्र उपयोगी
है.
रोग मुक्ति मंत्र:-
1. ॐ अच्युताय नमः (108) बार प्रतिदिन
2. ॐ गोविंदाय नमः (108)बार प्रतिदिन
आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन सूर्य उदय से दूसरे दिन के सूर्य उदय तक इनका जप करने से यह यह मंत्र सिद्ध होता है
और साधक जटिल से जटिल रोगों से मुक्त होता है
साथ ही उसे अन्नपूर्णा, धन ,लक्ष्मी व राज्य लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
Its very true predictions
ReplyDeleteThanks
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